विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने फिर एक बड़ा निर्णय लिया है!
विश्वविद्यालयों में पेशेवर लोग (विषय विशेष का व्यावहारिक अनुभव रखने वाले) बिना पीएच-डी/नैट की बंदिशों के भी प्रोफ़ेसर-ऑफ़-प्रैक्टिस होकर पढ़ा सकेंगे।
यूजीसी ने यों पहले भी एड्जंक्ट और विज़िटिंग शिक्षकों के रूप में ऐसे प्रावधान पेशेवर शिक्षण के लिए किए थे। उन्हीं प्रावधानों के अंतर्गत मैंने हरिदेव जोशी पत्रकारिता और जनसंचार विवि में राजेश जोशी, त्रिभुवन, नासिरुद्दीन हैदर ख़ान, ताबीना अंजुम जैसे पत्रकारों को एड्जंक्ट और विज़िटिंग प्रोफ़ेसर के रूप में विवि से जोड़ा था। केवल यूजीसी द्वारा निर्धारित मानदेय के आधार पर, जिसकी गणना कालांश से की जाती है। इस जुड़ाव को (भी) लेकर विश्वविद्यालय के विरुद्ध जाँच बैठी है, क्योंकि किसी ने इस पेशेवर अस्थायी शिक्षण प्रबंध को अपनी कल्पना से "नियुक्तियाँ" ठहराते हुए कोई शिकायत लिखी थी।
दिलचस्प बात यह है कि उसी शिकायतकर्ता ने पत्रकारिता विवि में कुलपति के रूप में मेरी नियुक्ति के विरुद्ध भी एक पीआइएल दायर की, क्योंकि मेरे पास चालीस साल से ऊपर का पेशेवर अनुभव तो था, पीएच-डी नहीं थी। हालाँकि विवि के अधिनियम के अनुसार मेरे मामले में (प्रथम/संस्थापक कुलपति के नाते) पीएच-डी अपेक्षित ही नहीं थी! लेकिन शिकायत शिकायत है, नियम नियम।
आशा की जानी चाहिए कि यूजीसी के ताज़ा निर्णय से पेशेवर (प्रफ़ेशनल) शिक्षण के प्रति आस्था का संचार होगा। दरअसल, हमारे समस्त विश्वविद्यालय शास्त्रीय ज्ञान से तो बहुत समृद्ध हैं, लेकिन पेशेवर शिक्षण में पिछड़े हुए हैं।
पेशे (इंडस्ट्री) का ज्ञान और कौशल महज़ पाठ्य-पुस्तकीय व्याख्याओं से हासिल नहीं हो सकता। शिक्षण में अकादमिक ज्ञान और पेशेवर अनुभव दोनों का तालमेल पेशेवराना और व्यावहारिक वृत्ति वाले संस्थानों में आवश्यक है।
