पेट के लिए पेट (PET) और परीक्षार्थी की दुर्दशा : चंद्रशेखर

 



जब हमारा देश गुलामी की जंजीरों में जकड़ा होगा

तब भी तानाशाहों ने ऐसा वीभत्स रूप न पकड़ा होगा

अँगरेज़ी राज में युवाओं ने इतना संघर्ष न सहा होगा

जितना आजकल युवाओं को स्वाधीनता में भी पराधीनता का स्वाद मिल रहा होगा

दो दिन में परीक्षा सेंटर तक पहुँचने में अव्यवस्थाओं का भयानक खेला हो रहा है

रातभर जगते हुए बसों में, ट्रेनों में धक्का-मुक्की ठेलम-ठेला हो रहा है

पेट के लिए देनी है पेट की परीक्षा,

पूरी करनी है अपनी तथा अपने माता-पिता की इच्छा

ट्रेन पर झूलकर, उसकी छत पर चढ़कर, अपनी जान को जोख़िम में डालकर

सपने पूरे करने निकले हैं ये, जो रखा था आँखों में वर्षों से पालकर!

मर जाएँ, गिरकर, कटकर; लूटकर रखे गए सरकारी कोष पर भार न होगा

बहुत चिल्लाते हैं रोज़गार, रोज़गार, मर जाएँ तो इन्हें देना रोजगार न होगा!

जहाँ गाँजा और भाँग का सेवन करने वालों के अभिनन्दन में फूल बरसाये जाते हों

लेकिन अपने देश के भविष्य  आदेशित प्रशासन द्वारा लठियाये जाते हों

जहाँ देश के कर्णधारों की ही नाव डुबायी जाती हो

किंतु देश को ही डुबाने वालों की नाव किनारे लायी जाती हो!

जहाँ देश के भविष्य को उचित वाहन न मिल पाते हों

जिस कारण दूर बनाये गए परीक्षाकेंद्र तक वे समय पर न पहुँच पाते हों जहाँ बेरोज़गारी का दंश झेल रहे युवाओं से दस गुना किराया वसूला जाता हो

किंतु चुनाव प्रचार के लिए नेताओं की रैली में घर-घर वाहन भेजा जाता हो

ऐसे देश का मालिक कौन है?

खद्दरधारी, सफेदपोश, गेरुआ रंग; देखो, कोई नहीं बोलता, हर कोई मौन है।   


          ( स्वरचित चंद्रशेखर प्रजापति)

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