फुलवारी शरीफ, जहां सूफी संतों ने प्रेम और सहनशीलता का संदेश फैलाया
पटना ( बिहार) :-
हजरत मखदूम की मज़ार, खानकाह मुजीबिया, शीश महल, शाही सांगी मस्जिद और इमारत शरिया का एक लंबा धार्मिक इतिहास है जो भारत में सूफी संस्कृति के जन्म और विकास से गहराई से जुड़ा हुआ है! प्राचीन काल के सूफी संतों ने बिहार को धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक विकास के महत्वपूर्ण केंद्रों में से एक बनाया था और फुलवारी शरीफ एक ऐसा क्षेत्र था जहां सूफी संतों ने अपने प्रेम और सहिष्णुता का संदेश फैलाया था और इसे यहां महसूस किया जा सकता है! इस माहौल में सभी धर्मों के लोग एक दूसरे का सम्मान करते हैं!
फुलवारी शरीफ के सरजमीन पर कदम रखने वाले प्रथम सूफी संत हजरत मखदूम मिन्हाजुद्दीन रहमतुल्लाह अलैह ( पीर मुजीबुल्लाह कादरी ) रहमतुल्लाह अलैहे की मजारशरीफ़ मौजूद हैं, खानकाह-ए-मुजीबिया के प्रबंधक हजरत मौलाना मिनहाजउद्दीन कादरी औऱ खानकाह मुजीबिया के पीर सज्जादानशीं हजरत मौलाना सैयद शाह मोहम्मद अयातुल्लाह कादरी हैं!
हजरत मखदूम रस्ती की मजार, खानकाह मुजीबिया, शीश महल, शाही सांगी मस्जिद और इमरत शरिया का एक लंबा धार्मिक इतिहास है जो भारत में सूफी संस्कृति के जन्म और विकास से जुड़ा हुआ है!
प्राचीन काल के सूफी संतों ने बिहार को धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक विकास के महत्वपूर्ण केंद्रों में से एक बना दिया था और फुलवारी शरीफ एक ऐसा क्षेत्र था जहां सूफी संतों ने प्रेम और सहनशीलता का संदेश फैलाया था और वही यहां महसूस किया जा सकता है! वातावरण में सभी धर्मों के लोग एक दूसरे का सम्मान करते हैं!
शाही सांगी मस्जिद में इस क्षेत्र के समृद्ध स्थापत्य अतीत के अवशेष हैं! मुगल सम्राट हुमायूं द्वारा लाल बलुआ पत्थर में निर्मित और फुलवारी शरीफ की सबसे पुरानी मस्जिदों में से एक है! मस्जिद पर्यटकों के मुख्य आकर्षणों में से एक है! मस्जिद के पास ख्वाजा इमादुद्दीन कलंदर का एक दरगाह [मकबरा] है! इसे लाल मियां की दरगाह के नाम से भी जाना जाता है!
हर साल 29 अल-हिज्जा को शाह मखदूम रस्ती रहमतुल्ला अल्लाह की मज़ार पर उर्स होता है और पूरे भारत से शिष्य यहां श्रद्धांजलि देने और आध्यात्मिक संतुष्टि प्राप्त करने के लिए आते हैं!!
