फ़िल्म फेयर अवार्ड पाने वाले दिलीप कुमार
क्या आप जानते हैं कि फिल्मी दुनिया मे अभिनय सम्राट कहे जाने वाले, और सर्वाधिक आठ बार बेहतरीन अभिनय के लिये फ़िल्म फेयर अवार्ड पाने वाले दिलीप कुमार
को फिल्मों की दुनिया में बिल्कुल भी रुचि नही थी ....!!
.... भारतीय सिनेमा में अदाकारी के पितामह बन चुके दिलीप कुमार जब 20 साल के खूबसूरत नौजवान यूसुफ़ सरवर खान हुआ करते थे, और अपने पिता के फलों के व्यवसाय को सीखने समझने की कोशिश में लगे हुए थे, तो इत्तेफाक से एक दिन उस समय की बड़ी फिल्मी अभिनेत्री और फ़िल्म निर्माता "देविका रानी" ने यूसुफ़ को देखा और उनके व्यक्तित्व से वो बहुत प्रभावित हुईं, असल मे यूसुफ के एक परिचित डॉक्टर, जो देविका रानी के डॉक्टर थे, वो यूसुफ को घुमाने के लिये फ़िल्म स्टूडियो ले गए थे, जहां जब देविका रानी ने यूसफ़ को देखा, तो उन्होंने यूसुफ से पूछा कि क्या तुम उर्दू जानते हो ?
जब यूसुफ ने 'हां' में जवाब दिया, इसके बाद डॉक्टर साहब यूसुफ के फलों के व्यापार के बारे में देविका रानी को बताने लगे, तो देविका रानी ने यूसुफ से कहा कि मुझे एक नौजवान, गुड लुकिंग और पढ़े लिखे एक्टर की ज़रूरत है. मुझे तुममें एक अच्छा एक्टर बनने की काबिलियत दिख रही है, क्या तुम साढ़े बारह सौ रुपये महाना पर हमारे स्टूडियो में हीरो के तौर पर काम करोगे ? लेकिन युसुफ ने माफ़ी मांगते हुए कहा कि मैं फिल्मो के बारे में कुछ नही जानता, मैं ये काम नही कर पाऊंगा.
तब देविका रानी ने यूसुफ से पूछा कि तुम फलों के कारोबार के बारे में कितना जानते हो, यूसफ़ का जवाब था, "मैं सीख रहा हूं."
तब देविका रानी ने कहा कि जब तुम फलों के कारोबार और फलों की खेती के बारे में सीख रहे हो तो अभिनय भी सीख लोगे"
यूसुफ के साथ गए डॉक्टर साहब ने भी ज़ोर दिया कि यूसुफ इस काम को स्वीकार कर लें, साढ़े बारह सौ रुपये महीना 1943 के दौर में बहुत बड़ी रकम थी, सो शुरुआती हिचकिचाहट के बाद यूसुफ ने फिल्मों में काम करने का देविका रानी का वो प्रस्ताव स्वीकार कर लिया, इसके साथ ही देविका रानी ने यूसुफ को नया स्क्रीन नेम "दिलीप कुमार" दे दिया
दिलीप कुमार की पहली फ़िल्म "ज्वार भाटा" 1944 में रिलीज हुई, ... फ़िल्म तो खास नही चली लेकिन नौजवान हीरो दिलीप कुमार को नोटिस किया गया, ... क्योंकि दिलीप कुमार उर्दू समेत कई भाषाओं पर अच्छी पकड़ रखते थे, इसलिये उनकी डायलॉग डिलीवरी शुरू से ही असरदार रही, फिर धीरे धीरे उन्होंने अभिनय की बारीकियों को भी सीख लिया...
दिलीप कुमार स्वाभाविक अभिनय करते थे, जो नाटक जैसा बिल्कुल न लगता, और यही वजह थी कि अपने किरदारों में वो दर्शकों को बांध लेते, अपने दौर की अनगिनत फिल्मों में उन्होंने प्रेम में पीड़ित, या समाज के सताये हुए व्यक्ति के किरदारों के अभिनय को इतनी जीवंतता के साथ जिया कि उनका नाम "ट्रेजेडी किंग" रख दिया गया था
बाद में आने वाले फिल्म एक्टर्स के लिये वो एक एक्टिंग इंस्टिट्यूट की तरह बन गए थे कि नए हीरो दिलीप कुमार को देखकर अभिनय सीखते थे
.... दिलीप कुमार की पैदाइश 11 दिसम्बर 1922 को हुई थी, और 7 जुलाई 2021 को 98 साल की उम्र में उनका इन्तेकाल हो गया था....
आज 11 दिसम्बर है, हालांकि उन्होंने भरपूर लम्बी ज़िन्दगी जी, लेकिन फिर भी दिल मे ख्याल आता है, कि आज अगर वो होते तो अपना एक सौ एकवां जन्मदिन मना रहे होते,
बहरहाल, दिलीप साहब को खिराज ए तहसीन !! तस्वीर उनकी पहली फ़िल्म 'ज्वार भाटा' से है, देखकर मालूम चलता है, कि वाक़ई उनका व्यक्तित्व प्रभावशाली था, जिस व्यक्तित्व को देविका रानी ने बेहतरीन परखा, और तराशा !!
