आर्टिकल 30, जिसका AMU अल्पसंख्यक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने किया ज़िक्र




नई दिल्ली -NKB NEWS - सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा अज़ीज़ बाशा केस में 1967 के फैसले को खारिज कर दिया और कहा कि कोई संस्था अपना अल्पसंख्यक दर्जा सिर्फ इसलिए नहीं खो सकती क्योंकि उसका गठन एक कानून के तहत हुआ है! सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कोर्ट को इस बात की जांच करनी चाहिए कि विश्वविद्यालय की स्थापना किसने की और इसके पीछे किसका 'ब्रेन' था!

सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि संस्थान को स्थापित करने और उसके सरकारी तंत्र का हिस्सा बन जाने में अंतर है, आर्टिकल 30 (1) का मकसद यही है कि अल्पसंख्यकों का बनाया गया संस्थान उनके जरिये ही चलाया जाए! आर्टिकल 30 के तहत अल्पसंख्यक संस्थान हो सकते हैं!


क्या है आर्टिकल 30

आर्टिकल 30 भारतीय संविधान का एक महत्वपूर्ण अनुच्छेद है, जो अल्पसंख्यक वर्गों के शिक्षा संस्थानों की स्थापना और प्रबंधन के अधिकार के बारे में है! यह अनुच्छेद अल्पसंख्यक वर्गों को अपनी भाषा, संस्कृति और धर्म की रक्षा और प्रसार के लिए शिक्षा संस्थान स्थापित करने और चलाने का अधिकार प्रदान करता है!


आर्टिकल 30 की ज़रूरी बातें :-

-अल्पसंख्यक वर्गों को अपने शिक्षा संस्थान स्थापित करने का अधिकार है!

-अल्पसंख्यक वर्गों को अपने शिक्षा संस्थानों में प्रवेश और शिक्षा के लिए अपनी भाषा और संस्कृति का उपयोग करने का अधिकार है!

-अल्पसंख्यक वर्गों को अपने शिक्षा संस्थानों में अपने धर्म और संस्कृति की शिक्षा देने का अधिकार है!

-राज्य अल्पसंख्यक वर्गों के शिक्षा संस्थानों को वित्तीय सहायता प्रदान कर सकता है!

-अल्पसंख्यक वर्गों के शिक्षा संस्थानों को राज्य द्वारा मान्यता प्राप्त होना आवश्यक है!

क्यों मिलता है ये दर्जा

अब सवाल है कि अल्पसंख्यक दर्जा क्यों दिया जाता है, दरअसल भारत में तमाम अल्पसंख्यकों के विकास और उनकी पढ़ाई को लेकर ये व्यवस्था की गई थी! ऐसे संस्थानों में इन अल्पसंख्यकों को आरक्षण मिलता है और उनका शैक्षणिक विकास होता है! यही वजह है कि इन संस्थानों को कुछ खास अधिकार दिए जाते हैं, यानी तमाम तरह के नियम-कायदे ये खुद तय कर सकते हैं! ऐसे संस्थानों की लिस्ट काफी लंबी है, देश के कई बड़े विश्वविद्यालय इसमें आते हैं! फिलहाल अब तीन जजों की बेंच एएमयू के दर्जे पर आखिरी फैसला सुनाएगी!!

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